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01/07/2017

मोको कहां ढुंढे रे बंदे - कविता

नमस्कार मित्रों । आज मैं आपके सामने एक सुंदर कविता प्रस्तुत करना चाहता हुं जो कि आदरणीय श्री संत कबीर दास जी द्वारा लिखी गयी थी , इस कविता की पंक्तियों में एक जागरुकता , एक विश्वाश , एक जीने की राह छुपी है यदि आप इसे समझ सकते हैं तो ज़रा ध्यान से इसे पढ़ें और अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बनायें , दोस्तो दरअस्ल मैं यह कविता आपके सामने इसलिये ला रहा हुं क्योंकि आजकल माहौल ही कुछ इस तरह का है कि मेरा मन उब सा गया और चारों तरफ अंधविश्वास फैला देख मुझे एक निराशा सी महसुस होती है विश्वाश तक तो सीमित है लेकिन आजकल विश्वाश की क़दर नहीं होती , दोस्तो आजकल पाखंड़ी साधु बहुत है , यहां तक की आजकल के लोग मंदिरों में भी झुठ का सहारा लेकर पैसा बटोरते है मैं यह सब बंद करवा देना चाहता हुं बस आपका साथ मिलना चाहिए , तभी हमारा देश उन्नति की राह में आगे बढ़ पायेगा ,
"एक धियाड़ीदार इन्सान दिनभर मेहनत करके 300 रुपये कमाता है शाम को मंदिर में भगवान का शुक्रिया अदा करने क्या चला जाता है बस पाखंडी पुजारी उसे यह कहकर उलझा देते हैं कि तेरा बुरा समय चल रहा है और तेरे घर में किसी आत्मा का साया है , तो तू यहां मंदिर में 1100 रुपये चढ़ा दे तो सब ठीक हो जायेगा " ,
यार मेरा गुरु ये कहां का इन्साफ हुआ भला ? बेचारा 300 रुपये भी बड़ी मुश्किल से कमा रहा है और तु 500 मांग रहा है ? फिर भगवान के ड़र ये वह व्यक्ति तो किसी से उधार लेकर पैसे चढ़ा देगा और साहुकारों के आधिन कर्ज में डुब जायेगा तो खायेगा क्या ? वो तो मर जायेगा ,
मगर याद रखना वो लोग बिना कश्ती के किनारे पार जाया करते हैं , जो लोग उस खुदा के दिल में आया करते है.
इसे तो इसका भगवान इसके मरने के बाद भी इन्साफ दिलायेगा मगर वो घोंगी पुजारी कहां जायेगा ? कहां छुपेगा वो उस तीन आंखों वाले से ? नहीं छुप पायेगा और एक दिन अपनी करनी की सजा भुगतनी ही पड़ेगी , ख़ुब कहा है किसी शायर ने " बक्श देता है ख़ुदा उन्हे जिनकी किस्मत ख़राब होती है मगर वो हरगिज़ नही बक्शे जाते जिनकी नियत ख़राब होती है" इसी प्रकार यहां पुजारी की नियत खराब है तो पुजारी तो पुजारी होकर भी कुत्ते की मौत मरेगा और न जाने मौत के बाद उसकी रुह को वो खुदा कितना तड़फायेगा , और यह मामला मैने अपनी आंखो से देखा है यह बिल्कुल झुठ नहीं हैं मगर मैं किसी का नाम नहीं लुगा बस आप सभी को आग़ाह करुगां कि आपका ख़ुदा मंदिर मस्जिद में नहीं मिलेगा जब तक आप उसको अपने अंदर नहीं ढुंढ लेते , तो यही बात संत कबीर दास जी कहना चाहते है कि "मैं तो तेरे पास में , मैं तो तेरे पास में. मेरे ख्याल से यह बात सच है कि भगवान हमारे दिल में हैं हमारे विश्वाश में हैं मगर ज़रा ध्यान से ए दोस्त यह कलयुग है , यहां आदमी ही आदमी को बेच दिया करता है भगवान को तो किसी ने देखा भी नहीं अभी तक , तो चलिये आपका ज्यादा समय नहीं लुंगा बस जो बात आप तक पहुंचानी थी वो पहुंचा दी बस आगे आपका विश्वास और आस्था पर बात निर्भर करती है कि आप भगवान को ढुंढने कहां कहां जाते हैं.

कविता - मोको कहां ढुंढे रे बंदे.
कवि - कबीर दास
Kabir daas poetry in hindi

मोको कहां ढूँढे रे बन्दे
मैं तो तेरे पास में
ना तीरथ मे ना मूरत में
ना एकान्त निवास में
ना मंदिर में ना मस्जिद में
ना काबे कैलास में
मैं तो तेरे पास में बन्दे
मैं तो तेरे पास में
ना मैं जप में ना मैं तप में
ना मैं बरत उपास में
ना मैं किरिया करम में रहता
नहिं जोग सन्यास में
नहिं प्राण में नहिं पिंड में
ना ब्रह्याण्ड आकाश में
ना मैं प्रकुति प्रवार गुफा में
नहिं स्वांसों की स्वांस में
खोजि होए तुरत मिल जाउं
इक पल की तालास में
कहत कबीर सुनो भई साधो
मैं तो हूं विश्वास में.

तो दोस्तो यही है वह कविता जिसमे कई सारे सच छुपे हुए है मगर कोई जानकर भी जान नहीं पाता , तो कविता कैसी लगी ? और अपने बारे में भी हमें बताएं यदि मुमकिन हो , यदि आप हमारे पाठकों तक कोई कहानी या मन की बात पहुंचाना चाहते हैं तो हमें ई-मेल करें हम आपकी कहानी www.imdishu.com पर पब्लिश करेंगे और लोगो तक आपकी बात पहुंचाने का प्रयास करेंगे दोस्तो आप इस पोस्ट की लिंक चाहें तो दोस्तो से भी शेअर कर सकते है यदि आप चाहते हैं कि आपका दोस्त भगवान को ढुंढने के लिये दर दर न फिरता रहे. दोस्तो आप हमारी वेबसाइट को सब्सक्राइब भी कर सकते है जिससे आपको हमारी सभी पोस्टें ई-मेल पर मिल सकेगी. धन्यवाद

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