Posted By : #PanwerDishu
यही दिन था और साल 1999 था , भारतीय सैनिकों ने भारत देश के लिये अपनी कुर्बानियां देखर विजयी करवाया था।
या तो तू बलिदान देकर स्वर्ग में सुख भोगेगा , या जीत कर पृथ्वी पर राज करेगा , गीता के इसी महान् श्लोक को ध्यान में रखते हुए हमारे भारतीय शुरवीर सैनिक जंग के मैदान में उतरे थे। और हमारी स्वर्ण भुमि में उन घुसपैठियों से मुक्ति दिलाई थी।
ये महान् दिन उन शुरवीरों को याद करने का है जिन्होंने हंसते हंसते देश के लिये जान न्योछावर की थी मेरा यह दिन समर्पित है उन महान् सैनिकों के लिये जिन्होंने हमारो कल के लिये अपने आज का बलिदान दिया था। कारगिल युद्ध भारत का एैसा इतिहास है जिसे सुनकर सभी सैनिकों में साहस भर आता है और फिर किसी भी पहाड़ से टकराने से नहीं डरते इन्ही महान साहसी लोगों से आपका भी थोड़ा परिचय करवा देता हूं चलिये :
हिमालय की उंचाई से उंचा था उनका साहस :
इस विनाश्क युद्ध में कुल 527 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए थे और लगभग 1300 सैंनिक लड़ते लड़ते घायल हुए थे। इन सिपाहियों ने उस फ़र्ज को निभाया जिसका संकल्प हर सिपाही तिरंगे झंड़े के समक्ष लेता है। सलाम है इनके हौंसले को जिस हौंसले ने हमारा भविष्य बनाया। वरना आज , आज ना होता।
इन वीरों ने अपने परिजनों से यह वादा किया था कि ये लौट कर आयेंगे। और लौट कर आये भी , मगर इनके आने का अंदाज़ कुछ अलग था ये आये लकड़ी से बने बंद ताबुतों में , वो ताबुत भी कितना किस्मत वाला रहा होगा जिसमें इतने वीर सिपाही सो रहे थे। और तिंरगा , जिसके समक्ष सभी सिपाही इसकी रक्षा का संकल्प लिया करते थे आज वही तिंरगा इन वीरों से लिपटकर इनके शोर्य व अदम्य साहस से भरी गौरव गाथा का बखान कर रहा था।
4 जाट रेजिमेंट के ले. सौरभ कालिया अपने 4 जवानों (सिपाही अर्जुनराम, भगवान बागरिया, भीकाराम व नरेशसिंह) के साथ 14 मई को पेट्रोलिंग पर निकल गए और बजरंग पोस्ट पर बैठे घुसपैठियों का ले. कालिया ने मुकाबला किया पर गोला-बारूद खत्म होने पर दुश्मन की गिरफ्त में आ गए। तीन हफ्ते बाद उनके और साथियों के क्षत-विक्षत शव भारतीय अधिकारियों को सौंपे गए। उन्हे बुरी तरह यातनाएँ देकर मारा गया था।
देखते ही देखती स्थिति बदलने लगी और उंची पोस्ट पर बैठी घुस्पैठिये भारतीय फार्वड पार्टी पर भारी पड़ने लगे। 18 मई को 56वीं मॉउंटन ब्रिगेड़ ने पॉइंट 4295 और 4460 पर कब्जा कर लिया था तब जाकर भारतीय सेना ने खुलासा किया कि पाकिस्तानी सेना ने लाइन ऑफ कंट्रोल में कई जगह घुसपैठ की है। तत्कालीन सेना अध्यक्ष वीपी मलिक 23 मई को कारगिल पहुँच चुके थे।
भारत के वीर सपूत : खराब होते हालात को देख वायुसेना से मदद माँगी गई। 27 मई को स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा और के. नचिकेता मिग 21 विमानों से युद्ध क्षेत्र में उड़ान भर रहे थे। तकनीकी खराबी की वजह से के. नचिकेता को आपात स्थिति में विमान से इजेक्ट करना पड़ा। उनकी स्थिति का पता लगाने के लिए स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा ने नीची उड़ान भरने का फैसला किया मगर स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा का विमान दुश्मन द्वारा दागी गई स्ट्रिंगर मिसाइल का शिकार हुआ।
फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और पैराशूट से उतरते समय भी शत्रुओं पर गोलीबारी जारी रखी और लड़ते-लड़ते शहीद हो गए। स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा को (मरणोपरांत) वीर चक्र से सम्मानित किया गया। फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता इस युद्ध में पाकिस्तान द्वारा युद्धबंदी बनाए गए थे जिन्हें 3 जून 1999 को वापस भारत को लौटा दिया गया।
यहाँ तक कि पाकिस्तानी लड़ाकों ने भी उनकी बहादुरी को सलाम किया था और उन्हें ‘शेरशाह’ के नाम से नवाजा था। मोर्चे पर डटे इस बहादुर ने अकेले ही कई शत्रुओं को ढेर कर दिया। सामने से होती भीषण गोलीबारी में घायल होने के बावजूद उन्होंने अपनी Delta टुकड़ी के साथ चोटी नं. 4875 पर हमला किया, मगर एक घायल साथी अधिकारी को युद्धक्षेत्र से निकालने के प्रयास में माँ भारती का लाड़ला विक्रम बत्रा 7 जुलाई की सुबह शहीद हो गया। अमर शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा को अपने अदम्य साहस व बलिदान के लिए मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च सैनिक पुरस्कार ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।
युद्ध के पश्चात पाकिस्तान ने इस युद्ध के लिए कश्मीरी आतंकवादियों को जिम्मेदार ठहराया था, जबकि यह बात किसी से छिपी नहीं थी कि पाकिस्तान इस पूरी लड़ाई में लिप्त था। यह युद्ध ऊँचाई पर लड़े जाने वाले विश्व के प्रमुख युद्धों में से एक है। सबसे बड़ी बात यह रही कि दोनों ही देश परमाणु हथियारों से संपन्न हैं।
पर कोई भी युद्ध हथियारों के बल पर नहीं लड़ा जाता है, युद्ध लड़े जाते हैं साहस, बलिदान, राष्ट्रप्रेम व कर्त्तव्य की भावना से और हमारे भारत में इन जज्बों से भरे युवाओं की कोई कमी नहीं है।
मातृभूमि पर सर्वस्व न्योछावर करने वाले अमर बलिदानी भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं, मगर इनकी यादें हमारे दिलों में हमेशा-हमेशा के लिए बसी रहेंगी...
यही दिन था और साल 1999 था , भारतीय सैनिकों ने भारत देश के लिये अपनी कुर्बानियां देखर विजयी करवाया था।
या तो तू बलिदान देकर स्वर्ग में सुख भोगेगा , या जीत कर पृथ्वी पर राज करेगा , गीता के इसी महान् श्लोक को ध्यान में रखते हुए हमारे भारतीय शुरवीर सैनिक जंग के मैदान में उतरे थे। और हमारी स्वर्ण भुमि में उन घुसपैठियों से मुक्ति दिलाई थी।
ये महान् दिन उन शुरवीरों को याद करने का है जिन्होंने हंसते हंसते देश के लिये जान न्योछावर की थी मेरा यह दिन समर्पित है उन महान् सैनिकों के लिये जिन्होंने हमारो कल के लिये अपने आज का बलिदान दिया था। कारगिल युद्ध भारत का एैसा इतिहास है जिसे सुनकर सभी सैनिकों में साहस भर आता है और फिर किसी भी पहाड़ से टकराने से नहीं डरते इन्ही महान साहसी लोगों से आपका भी थोड़ा परिचय करवा देता हूं चलिये :
हिमालय की उंचाई से उंचा था उनका साहस :
इस विनाश्क युद्ध में कुल 527 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए थे और लगभग 1300 सैंनिक लड़ते लड़ते घायल हुए थे। इन सिपाहियों ने उस फ़र्ज को निभाया जिसका संकल्प हर सिपाही तिरंगे झंड़े के समक्ष लेता है। सलाम है इनके हौंसले को जिस हौंसले ने हमारा भविष्य बनाया। वरना आज , आज ना होता।
इन वीरों ने अपने परिजनों से यह वादा किया था कि ये लौट कर आयेंगे। और लौट कर आये भी , मगर इनके आने का अंदाज़ कुछ अलग था ये आये लकड़ी से बने बंद ताबुतों में , वो ताबुत भी कितना किस्मत वाला रहा होगा जिसमें इतने वीर सिपाही सो रहे थे। और तिंरगा , जिसके समक्ष सभी सिपाही इसकी रक्षा का संकल्प लिया करते थे आज वही तिंरगा इन वीरों से लिपटकर इनके शोर्य व अदम्य साहस से भरी गौरव गाथा का बखान कर रहा था।
4 जाट रेजिमेंट के ले. सौरभ कालिया अपने 4 जवानों (सिपाही अर्जुनराम, भगवान बागरिया, भीकाराम व नरेशसिंह) के साथ 14 मई को पेट्रोलिंग पर निकल गए और बजरंग पोस्ट पर बैठे घुसपैठियों का ले. कालिया ने मुकाबला किया पर गोला-बारूद खत्म होने पर दुश्मन की गिरफ्त में आ गए। तीन हफ्ते बाद उनके और साथियों के क्षत-विक्षत शव भारतीय अधिकारियों को सौंपे गए। उन्हे बुरी तरह यातनाएँ देकर मारा गया था।
देखते ही देखती स्थिति बदलने लगी और उंची पोस्ट पर बैठी घुस्पैठिये भारतीय फार्वड पार्टी पर भारी पड़ने लगे। 18 मई को 56वीं मॉउंटन ब्रिगेड़ ने पॉइंट 4295 और 4460 पर कब्जा कर लिया था तब जाकर भारतीय सेना ने खुलासा किया कि पाकिस्तानी सेना ने लाइन ऑफ कंट्रोल में कई जगह घुसपैठ की है। तत्कालीन सेना अध्यक्ष वीपी मलिक 23 मई को कारगिल पहुँच चुके थे।
फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और पैराशूट से उतरते समय भी शत्रुओं पर गोलीबारी जारी रखी और लड़ते-लड़ते शहीद हो गए। स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा को (मरणोपरांत) वीर चक्र से सम्मानित किया गया। फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता इस युद्ध में पाकिस्तान द्वारा युद्धबंदी बनाए गए थे जिन्हें 3 जून 1999 को वापस भारत को लौटा दिया गया।
‘ये दिल माँगे मोर’ : हिमाचल प्रदेश के छोटे से कस्बे पालमपुर के 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स के कैप्टन विक्रम बत्रा उन बहादुरों में से एक हैं, जिन्होंने एक के बाद एक कई सामरिक महत्व की चोटियों पर भीषण लड़ाई के बाद फतह हासिल की थी।
यहाँ तक कि पाकिस्तानी लड़ाकों ने भी उनकी बहादुरी को सलाम किया था और उन्हें ‘शेरशाह’ के नाम से नवाजा था। मोर्चे पर डटे इस बहादुर ने अकेले ही कई शत्रुओं को ढेर कर दिया। सामने से होती भीषण गोलीबारी में घायल होने के बावजूद उन्होंने अपनी Delta टुकड़ी के साथ चोटी नं. 4875 पर हमला किया, मगर एक घायल साथी अधिकारी को युद्धक्षेत्र से निकालने के प्रयास में माँ भारती का लाड़ला विक्रम बत्रा 7 जुलाई की सुबह शहीद हो गया। अमर शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा को अपने अदम्य साहस व बलिदान के लिए मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च सैनिक पुरस्कार ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।
1/11 गोरखा राइफल्स के लेफ्टिनेंट मनोज पांडेय की बहादुरी की इबारत आज भी बटालिक सेक्टर के ‘जुबार टॉप’ पर लिखी है। अपनी गोरखा पलटन लेकर दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र में ‘काली माता की जय’ के नारे के साथ उन्होंने दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए। अत्यंत दुर्गम क्षेत्र में लड़ते हुए मनोज पांडेय ने दुश्मनों के कई बंकर नष्ट कर दिए।
गम्भीर रूप से घायल होने के बावजूद मनोज अंतिम क्षण तक लड़ते रहे। भारतीय सेना की ‘साथी को पीछे न छोड़ने की परम्परा’ का मरते दम तक पालन करने वाले मनोज पांडेय को उनके शौर्य व बलिदान के लिए मरणोपरांत 'परमवीर चक्र' से सम्मानित किया गया।
गम्भीर रूप से घायल होने के बावजूद मनोज अंतिम क्षण तक लड़ते रहे। भारतीय सेना की ‘साथी को पीछे न छोड़ने की परम्परा’ का मरते दम तक पालन करने वाले मनोज पांडेय को उनके शौर्य व बलिदान के लिए मरणोपरांत 'परमवीर चक्र' से सम्मानित किया गया।
17 जाट रेजिमेंट के बहादुर कैप्टन अनुज नायर टाइगर हिल्स सेक्टर की एक महत्वपूर्ण चोटी ‘वन पिंपल’ की लड़ाई में अपने 6 साथियों के शहीद होने के बाद भी मोर्चा सम्भाले रहे। गम्भीर रूप से घायल होने के बाद भी उन्होंने अतिरिक्त कुमुक आने तक अकेले ही दुश्मनों से लोहा लिया, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय सेना इस सामरिक चोटी पर भी वापस कब्जा करने में सफल रही। इस वीरता के लिए कैप्टन अनुज को मरणोपरांत भारत के दूसरे सबसे बड़े सैनिक सम्मान ‘महावीर चक्र’ से नवाजा गया।
कारगिल में पाकिस्तानी सेना के होने का सीधा प्रमाण दिया 1 बिहार के जाँबाज अधिकारियों व जवानों ने। 29 मई को मेजर सर्वानन और उनके 15 जवानों ने पॉइंट 4268 पर आक्रमण किया। यह लड़ाई आमने-सामने की थी। दुश्मन द्वारा जबरदस्त गोलाबारी के बीच मेजर सर्वानन ने गंभीर रूप से घायल होने पर भी दुश्मन के बंकर पर कब्जा कर लिया। भीषण लड़ाई में मेजर सर्वानन शहीद हुए और उन्हें (मरणोपरांत) वीरचक्र से सम्मानित किया गया।
उनकी शहादत का पता चलने पर नायक गणेश प्रसाद (वीरचक्र, मरणोपरांत) ने अपने कंपनी कमांडर का अनुसरण करते हुए मदद आने तक दुश्मन से बंकर की रक्षा करते वीरगति को प्राप्त किया। अपने साथियों के शव निकालने गए नायक शत्रुघ्नसिंह को भी गोली लगी पर उन्होंने दुश्मन की एलएमजी पर कब्जा कर अनेक दुश्मनों को ढेर कर दिया। उन्होंने मारे गए एक पाकिस्तानी की जेब से पाकिस्तान के महत्वपूर्ण सैन्य दस्तावेज हासिल कर अधिकारियों को दिए।
उनकी शहादत का पता चलने पर नायक गणेश प्रसाद (वीरचक्र, मरणोपरांत) ने अपने कंपनी कमांडर का अनुसरण करते हुए मदद आने तक दुश्मन से बंकर की रक्षा करते वीरगति को प्राप्त किया। अपने साथियों के शव निकालने गए नायक शत्रुघ्नसिंह को भी गोली लगी पर उन्होंने दुश्मन की एलएमजी पर कब्जा कर अनेक दुश्मनों को ढेर कर दिया। उन्होंने मारे गए एक पाकिस्तानी की जेब से पाकिस्तान के महत्वपूर्ण सैन्य दस्तावेज हासिल कर अधिकारियों को दिए।
वीरता और बलिदान की यह फेहरिस्त यहीं खत्म नहीं होती। 2 राजपूत राइफल्स के मेजर पद्मपणि आचार्य (महावीर चक्र, मरणोपरांत), 18 ग्रेनेडियर्स की घातक कंपनी के ले. बलवान सिंह (महावीर चक्र), लद्दाख स्कॉउट्स के मेजर सोनम वोंगचुक (महावीर चक्र), 12 जेके लाइट इंफेंट्री के ले. केशिंग क्लेफोर्ड नागारूम (महावीर चक्र, मरणोपरांत) सहित भारतीय सेना के विभिन्न रैंकों के लगभग 30,000 अधिकारी व जवानों ने ऑपरेशन विजय में भाग लिया।
युद्ध के पश्चात पाकिस्तान ने इस युद्ध के लिए कश्मीरी आतंकवादियों को जिम्मेदार ठहराया था, जबकि यह बात किसी से छिपी नहीं थी कि पाकिस्तान इस पूरी लड़ाई में लिप्त था। यह युद्ध ऊँचाई पर लड़े जाने वाले विश्व के प्रमुख युद्धों में से एक है। सबसे बड़ी बात यह रही कि दोनों ही देश परमाणु हथियारों से संपन्न हैं।
पर कोई भी युद्ध हथियारों के बल पर नहीं लड़ा जाता है, युद्ध लड़े जाते हैं साहस, बलिदान, राष्ट्रप्रेम व कर्त्तव्य की भावना से और हमारे भारत में इन जज्बों से भरे युवाओं की कोई कमी नहीं है।
मातृभूमि पर सर्वस्व न्योछावर करने वाले अमर बलिदानी भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं, मगर इनकी यादें हमारे दिलों में हमेशा-हमेशा के लिए बसी रहेंगी...
‘शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पे मिटने वालों का यही बाकी निशाँ होगा’
साभार : Hindi.WebDuniya
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